एलेक्ट्रानिक मज़हब
आओ मज़हब-मज़हब खेलते हैं, तुम हमारे मज़हब का कारटून बनाओ और हम तुम्हारे मज़हब का बनाते हैं। बहुत मज़ा आये गा इस खेल में जब सभी मज़हबों कि बुराइयाँ खुल कर एक दूसरे को मालूम हों। लेकिन मज़हबों में बुराइयाँ कैसी? सभी मज़हब तो पाक व साफ़ हैं! सभी मज़हबों में अच्छी बातें होती हैं। मज़हब तो अपनी जगा ठीक है मगर ये मज़हबी लोग? मज़हबी लोगों में नफ़रत है एक दूसरे के लिये, हर किसी को अपना मज़हब प्यारा है और इसी यक़ीन पर वे दूसरे मज़हबों से नफ़रत करते हैं भले वे आपस में एक दूसरे के मित्र हों मगर दिल में बहुत कुछ रखते हैं।
किया ज़रूत है ऐसे मज़हबों की जो हम इनसानों को ग्रुपों में बांट दिया जैसे जंगल में जानवर अपने अलग ग्रुप बनाये रहते हैं और एक दूसरे पर हमला करते रहते हैं।
साइंसदानों से गुज़ारिश है कि वे इस नये दौर के लिये कुछ ईसा नया एलेक्ट्रॉनिक मज़हब बनाये ताकि दुनिया भर के इनसान सब एक हो जायें क्योंकि साईंस्दान जो भी चीज़ बनाते हैं लोग उसे अपना लेते हैं। किया ईसा होगा?
किया ज़रूत है ऐसे मज़हबों की जो हम इनसानों को ग्रुपों में बांट दिया जैसे जंगल में जानवर अपने अलग ग्रुप बनाये रहते हैं और एक दूसरे पर हमला करते रहते हैं।
साइंसदानों से गुज़ारिश है कि वे इस नये दौर के लिये कुछ ईसा नया एलेक्ट्रॉनिक मज़हब बनाये ताकि दुनिया भर के इनसान सब एक हो जायें क्योंकि साईंस्दान जो भी चीज़ बनाते हैं लोग उसे अपना लेते हैं। किया ईसा होगा?
6 Comments:
शुएब, आप ने बहुत अच्छी बात कही है... पर एक "एलेक्ट्रॉनिक मज़हब" बनाने में ईसा (Jesus) का क्या काम :-)? आप का आख़िरी जुमला होना चाहिए - "क्या ऐसा होगा?"
By Kaul, At 3:16 PM
shuaib! thats nice u like to learn languages... i cann't read ur post though but i just wanna appreciate u
By Shaper, At 6:17 PM
Shaper,
Since you can read and write Urdu which is similar to Hindi in spoken terms, it becomes damn easy to learn reading Hindi.
Try once, and you will believe my words!
By रवि रतलामी, At 7:45 PM
شیپر بھایٔ، روی صحیع کہ رہے ہیں۔ ہندی تو الگ زبان بھی نہیں ہے۔صرف ایک الگ سکرپٹ ہے۔
By Kaul, At 10:15 AM
शुएब जी, इलेक्ट्रॉनिक मज़हब में भी कहीं माइक्रोसॉफ्ट और लिनक्स जैसी लड़ाई न छिड़ जाए :) । वैसे, मज़हब के नाम पर ये सब लड़ाई वे लोग करते हैं; जिनका खुद मज़हब से कोई सरोकार नहीं होता। वरना इस बात से कौन इन्कार कर सकता है कि सभी मज़हब बुनियादी तौर पर दूसरों को बेवजह शारीरिक या मानसिक तौर पर परेशान करना ग़लत मानते हैं।
By Pratik Pandey, At 7:04 AM
शुएब भाई, बहुत अच्छा लिखते हो| 'कार्टून' वाली बात मन को छू गयी!
By Rohit Wason, At 6:36 PM
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home