नई बातें / नई सोच

Monday, March 20, 2006

मैं मुसलमान क्यों नहीं

इस का जवाब मुझे मालूम है, मेरे उर्दू ब्लॉग पर अकसर दूसरे उर्दू ब्लॉगर्स मुझ से पूछते रहते हैं कि आखिर इस्लाम के खिलाफ तुम्हारे विचार ऐसे क्यों हैं? कई बार मैं ने अपने उर्दू ब्लॉग पर मुखतलिफ तरीके से जवाब लिखा था और वही लेख यहां अपने इस हिन्दी ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूं।

मुझे मशहूर होना बिलकुल पसंद नहीं, मैं हमेशा सबसे अलग रहता हूं क्योंकि मेरे विचार दूसरों से बिलकुल नहीं मिलते। मैं ने दिल की भडास निकालने यों ही अपने उर्दू ब्लॉग पर लिखना शूरू किया था और उर्दू पढने वालों ने मुझे खूब गालियों के साथ टिप्पणियाँ लिखे और मुझे काफिर (हिन्दू) भी कह दिया। चंद ऐसे भी उर्दू ब्लॉगर्स थे जो मेरे विचारों को समझा और मेरे लेख को बिलकुल सही कहा क्योंकि बहुत सारे पढे लिखे लोग समझ चुके हैं के मज़हब (इस्लाम) किया है।

मैं ने अपने उर्दू ब्लॉग पर कभी इस्लाम के खिलाफ कुछ नहीं लिखा सिर्फ मज़हब से अपनी बेज़ारगी लिखा है और मुझे किसी भी मज़हब के खिलाफ लिखने का हक नहीं। मैं सभी धर्मों की इज़्ज़त करता हूं मगर आज़ाद खयाल इनसान हूं, मुझे अपने देश का कलचर बहुत प्यारा है कहीं हिन्दू-मुसलिम फसाद है तो वहीं आपस में प्यार और दोसती भी है, ऐसा कलचर भारत के सिवा दुनिया में दूसरी जगा कहीं देखने को नहीं मिलता।

मेरे मां-बाप और उनका पूरा खानदान सभी बंगलौर के शहरी हैं मगर हैं पक्के इसलामी, सभा-शाम नमाज़ें, कुरान और चौबीस घंटे यों ही इस्लाम की पाबंदी करते गुज़ार देते हैं। माता-पिता दोनों हमेशा मेरे लिये परेशान कि उनका एक बेटा जिसके दिल में खुदा का ज़रा भी खौफ नहीं, नमाज़-रोज़ा कि पाबंदी नहीं करता - दिन में एक काम भी इसलामी नहीं करता। आज भी मेरी मां फोन पर पूछ लेती हैं के वहां रोज़ाना नमाज़ पढता है कि नहीं? वो मेरी मां है मैं उसे नाराज़ नहीं करना चाहता भले वो पक्की मुसलमान औरत है, उसे नाराज़ किये बगेर मैं हमेशा जूठ बोलता हूं "हां अम्मी, तुम फिक्र न करो मैं रोज़ाना पाबंदी से नमाज़ पढ लेता हूं।"

मैं अपने आप को मुसलमान नहीं मानता मगर अपने मां-बाप की बहुत इज़्ज़त करता हूं, सिर्फ और सिर्फ उनको खुश करने के लिये उनके सामने मुस्लमान होने का नाटक करता हूं वरना मुझे अपने आपको मुसलमान कहते होवे बहुत गुस्सा आता है। मैं एक आम इनसान हूं, मेरे दिल में वही है जो दूसरों में हैः जूठ, फरेब, ईमानदारी, बे ईमानी, अच्छी और बुरी आदतें, कभी शरीफ और कभी कमीना बन जाता हूं, कभी किसी की मदद करता हूं और कभी नहीं - ये बातें तो हर इनसान में कॉम्मन हैं। एक दिन अब्बा ने अम्मी से गुस्से में आकर पूछाः किया शुऐब हमारा ही बच्चा है? तो वो हमारे तरह मुसलमान क्यों नहीं? कयामत के दिन अल्लाह मुझ से पूछे गा के तेरे एक बेटे को मुसलमान क्यों नहीं बनाया, तो मैं किया जवाब दूँ? पहले तो अब्बा और अम्मी ने मुझे प्यार से मनाया फिर खूब मारा-पीटा के हमारे तरह पक्का मुसलमान बने।

यहां दुबई में दुनिया भर के देशों के लोग रहते हैं, हैं तो ज़ियादा तर मुसलमान। मुझे शुरू से मुसलमान बन्ना पसंद नहीं और यहां आकर सभी लोगों को करीब से देखने और उनके साथ रहने के बाद अब तो इस्लाम से और बेज़ारी होने लगी है। मैं ये हरगिज़ नहीं कहता के इस्लाम गलत है, इसलाम तो अपनी जगा ठीक है मैं मुसलमान और उनके विचारों की बात कर रहा हूं।

मुझे बहुत खुशी होती है के मेरा कोई मज़हब नहीं मैं आज़ाद हूं, अपनी मरज़ी का राजा मगर मैं देश के कानून का पालन करता हूं, दूसरे सभी धर्मों को इज़्ज़त की नज़रों से देखता हूं। मूझ में धर्म नहीं तो इस का मतलब ये नहीं के मैं जाहिल या आतंकवादी हूं। मैं तो सीधा सादा इनसान हूं, मेरा किसी से कुछ लेना-देना नहीं, मैं अपने आप में हमेशा खुश रहता हूं। मुझे धर्म इस लिये पसंद नहीं क्योंकि ये कोई आसमान से नहीं उतरा बलके मेरा यकीन है ये धर्म पूराने ज़माने के किसी ने अपने कुंबे को एक जुट करने के लिये ग्रोह बनाऐ फिर उस को मानने वालों ने आगे चल कर धर्म की शकल अपनाली। मेरी नज़र में सब से अच्छा धर्म इनसानियत है और इस से अच्छा धर्म मेरे नज़दीक दूसरा कोई नहीं।

यही बातें मैं अपने उर्दू ब्लॉग पर लिखा तो पढने वालों ने मुझे खूब बुरा कहा और कहा के मैं अपना नाम बदली करों, मुसलमान से हिन्दू होजाऊं और बहुत कुछ कहा के मैं मुसलिम मुल्क में रहते होवे ऐसी बातें अपने ब्लॉग पर लिखता हूं वो दिन दूर नहीं जब मोलवी लोग तुम्हारे कतल का फतवा (ऐलान) कर देंगे, वगेरा वगेरा। हर एक को अपने दिल की बात कहने की पूरी आज़ादी है, मैं ने अपने उर्दू ब्लॉग पर popup में लिख दिया के "इस ब्लॉग पर सभी लेख अपने ज़ाती विचारों पर है न के किसी दूसरे के दिल को चोट करने के लिये, इस लिये मेहरबानी करके सभी लेख को पढते समे बुरा न मनाये क्योंकि ये मेरी ज़ाती डाईरी है। अगर कुछ बुरा लगे तो क्रपया माफ करें।" मैं ये हरगिज़ नहीं चाहता कि मेरा ब्लॉग दूसरा कोई पढे, ये मेरी आन-लईन डाईरी है पर है तो आन-लईन जिसे हर कोई पढ सकता है, इस लिये मैं ने popup पर लिख छोडा। दुनिया में सिर्फ मैं अकेला ही नहीं मुझ जैसे और भी हैं, मेरे उर्दू लेख पर बहुत सारों ने मुझे बधाई भी दी के तुमहारे बहुत अच्छे विचार हैं, अगर हर कोई तुमहारी तरह धर्म से बाहर आकर देखे तो उसे दुनिया जन्नत दिखाई देती है मगर मज़हबी लोग ऐसा करने को बहुत बडा पाप समझते हैं।

मैं घर जाऊँ तो मां-बाप मेरी शादी किसी ऐसी लडकी से करवा दें गे जो देनदार (पक्की मुसलमान) हो, और मैं उस मासूम लडकी की नज़रों में पापी जिसे खुदा पर ज़ारा भी यकीन नहीं। पता नहीं मेरी हम-खयाल लडकी कहां मेले गी, पर मुझे पूरा यकीन है के मेरे लायक कोई लडकी नहीं है, अगर शादी हो भी गई तो मेरी पत्नी पूरी ज़िनदगी परेशानी में रहे गी के किस क़िस्म के शख्स से मेरी शादी होई जो न हिन्दू है न मुसलमान? खैर मैं तो दुबई में हूं और यहां शादी-वादी की कोई ज़रूरत नहीं, ये है तो मुसलिम मुल्क पर यहां अपने आप को धोका दे सकते हैं के मुझे कोई नहीं देखता पर वहां भारत में कोई बुरा काम करो तो सब याद आजाते हैं भगवान, खुदा, जीस्स, हनुमान, बाबा, पत्नी, ब्च्चे, मां-बाप वगेरा वगेरा और यहां दुबई में कोई किसी का नहीं।

मुझे इस की कोई फिक्र नहीं के मरने के बाद मेरा किया होगा? मैं ने जन्नत देखली है, हां दुनिया मेरे लिये जन्नत है। मुझे बहुत खुशी होती है जब मैं किसी की मदद करता हूं, दूसरों के दुख-सुख में साथ दूँ ऐसा करते होवे मुझे बहुत अच्छा लगता है और जीने में आनंद भी आता है। 16 बरस से लेकर अठारा बरस तक मुखतलिफ अख़बारों में नौकरी किया है मैं ने, तकरीबन पूरे आठ साल तक मैं ने नईट ड्यूटी किया क्योंकि अख़बारों में front page composing रात को होती है और मैं सभी अख़बारों में front page composer के अलावा Add डिज़ईनर भी था। मां को मेरी नईट शिफ्ट बिलकुल पसंद नहीं थी ये मेरी मजबूरी थी क्योंकि दिन में मैं पढाई करता था। यों अख़बारों में काम करते मैं ने अपनी पूरी जवानी मीडिया में गुज़ारदिया और मीडिया में रहते मुझे मज़हब का अच्छा तजरबा भी होवा। मैं छे साल तक बंगलौर के एक उर्दू अखबार में भी काम किया है, वहां मुखतलिफ लोगों के साथ रहते मेरे मन से पूरी तरह मज़हब को निकाल ही दिया। मैं ये नहीं कहूँगा के किया सच है और किया जूठ, पर मैं जैसा भी हूं अपने आप में बिलकुल सही जा रहा हूं। मैं दूसरों को नहीं कहता के आप भी मेरी तरह सोचें क्योंकि मैं जो सोचता हूं उसे लोग गुनाह सम्झते हैं और मैं उसे सही जीवन मानता हूं।

मैं सिर्फ मां-बाप के डर से नमाज़ पढता था, उनको खुश करने के लिये रोज़े भी रखता था पर मेरा मन ये सब करने की इजाज़त नहीं देता। मुसलिम दोसत मेरे विचारों को देखते होवे मुझ से खफा हैं, माता पिता भी मेरे विचारों से परेशान हैं के मरने के बाद उनके बेटे का किया होगा? मां-बाप हमेशा मुझे नसीहत करते नहीं थकते, उनहें शक है के उनके बेटे पर किसी ने जादू किया है। अपने मां बाप से ये कहते होवे मुझे बहुत शर्म आती है के मैं मुसलमान नहीं हूं और न ही मुझे मुसलमान बनना है। ये सुनकर मेरे माता-पिता को बहुत दुख होगा और मैं अपने मां बाप को दुख नहीं देना चाहता, मेरे मां बाप जैसे भी हैं वो अपनी जगा ठीक हैं और मैं कोन हूं? किया हूं? ये मुझे मालूम है के मैं किया हूं - मेरे अंदर इनसानियत है और मैं सिर्फ इनसान हूं।

अमेरिका से एक पाकिसतानी ब्लॉगर लिखते हैं Why I am Not a “Muslim”

18 Comments:

  • यही बात दूसरे धर्म में भी लागू होती है। एक किस्सा सुनिये। एक बार वैज्ञानिको ने एक कमरे से सात बँदर बँद कर दिये, छत पर केले पटका दिये और एक स्टूल रख दिया। ज्यों ही कोई बँदर स्टूल पर चढ़ कर केले लेने की कोशिश करता, बाकी बँदरो पर छिपे फव्वारो से पानी की बौछार होती। धीरे धीरे बँदरो को समझ आ गया कि स्टूल पर चढ़ने से पानि आता है। चुँनाचे अब हर स्टूल पर चढ़ने वाला बँदर बाकियो से मार काने लगा। धीरे धीरे सरे बँदर केले का लालच भूल गये। यहाँ तक कीपानीका कनेक्शन काट दिया गया फिर भी। फिर एक बँदर को बाहर कर दिया गया और एक नया बँदर कमरे में लाया गया। बेचार जैसे ही स्टूल पर चढ़ा बाकी बँदर उस पर पिल पढ़े। अब धीरे धीरे वह भी समझ गया कि किसी को केले नही लेने देना। कयों यह सिर्फ बाकि छः को ही पता था। फिर एक बार एक नये बँदर कि अदला बदली एक पुराने से की गई। इस पर नये बँदर की जूतमपैजार में पिछली बार बदला गया बँदर भी शामिल था। हलाँकि उसके स्टूल पर चढ़ने पर पानी शुरू नही हुआ था फिर भी बाकी पाँच उसे इसलिये मार रहे थे कि कभी पहले उन्होनें स्टूल और पानी की बौछार में कामन कनेक्शन देखा था। छठा सिर्फ लकीर पीट रहा था। धीरे धीरे कमरे मे सारे बँदर नये ले आये गये। अब भी कोई भी केले नही ले सकता था, कयोंकि ऐसा करते ही बाकी उसे मारते थे , क्यों क्योंकि उन्होने अपने से पहले वालो को ऐसा करते देखा था।

    यही धर्म के साथ होता है। हम ऐसा करते हैं , कयोंकि हमसे पहले की पीढ़ी वैसा करती थी, वो वैसा करते थे क्योंकि पुरखे वैसा करते थे। अब पुरखे सत्रहँवी शताब्दी मे क्यों पर्दा करते थे, क्यों सती जलाते थे, क्यों दहेज लेते थे , क्यों अँधविश्वास करते थे , कोई नही पड़ताल करता। सब सिर्फ लकीर पीटते हैं।

    By Blogger Atul Arora, At 10:38 AM  

  • शुऐब, आप के ख़्यालात पढ़ कर मुझे आप से मुहब्बत हो गई है। वाकई एक मुसलमान के लिए इस तरह की बात करना बहुत हिम्मत का काम है। बचपन से ही मेरे क़रीबी दोस्त मुसलमान रहे हैं, पर किसी में इतनी अक्ल या जुर्रत नहीं थी कि मेरे नास्तिक विचारों के साथ समझौता कर सके। फिर भी एक हिन्दू के लिए ख़ुद को नास्तिक कहना कदरे आसान है, आप के लिए नहीं। उम्मीद है कि आप ने अपनी शिनाख़्त को बचा रखा होगा। हमारे देश में काश आप जैसे और हिन्दू-मुसलमान होते जो मुल्क को मज़हब से ज़्यादा तरजीह देते तो कितना अच्छा होता।

    By Blogger Kaul, At 11:47 AM  

  • आपके इस लेख से प्रेरित होकर मैने पूरा लेख लिख डाला है।

    http://www.tarakash.com/ravi/2006/03/blog-post_21.html

    By Blogger Unknown, At 12:14 PM  

  • बहुत सही फरमाया अतुलजी ने। बढिया उदाहरण ।

    By Blogger Unknown, At 12:16 PM  

  • बहुत ही सुलझे विचार हैं आपके. काश, आपके उर्दू ब्लॉग को भी पढ़ पाता. कई उर्दू जानने वाले दोस्तों को आपके ब्लॉग के बारे में बताया है.

    By Blogger हिंदी ब्लॉगर/Hindi Blogger, At 2:18 PM  

  • शुऐब भाई

    आपके विचारो को जान कर खुशी हुयी.
    मेरी नजरो मे तो आप एक सच्चे मुसलमान है !

    आशीष

    By Blogger Ashish Shrivastava, At 7:48 PM  

  • आप सचमुच मे हिम्मतवान और काबिल है. मैने अपनी जिंदगी मे इतना इमानदार मुसलमान (आप नही मानते) नही देखा.

    By Blogger पंकज बेंगाणी, At 8:12 PM  

  • बहुत ईमानदारी से आपने अपने ख्यालात पेश किये.
    अच्छा लगा पढकर.ऐसी ही सोच लोगों में बढे तो क्या बात.
    प्रत्यक्षा

    By Blogger Pratyaksha, At 8:34 PM  

  • शुऐब भाई,
    माफ़ कीजिएगा, कमेन्ट करने मे काफी देर कर दी है। बहुत बहुत अच्छा लेख लिखा है आपने। सबसे अच्छी बात, आपकी ईमानदारी की।लेकिन शोएब भाई, जो बात आप अपने धर्म के लिये कह रहे है, वो दूसरे धर्मों पर भी लागू होती है।मै खुद कई कई बार कुछ सवालों/रुढिवादी परम्पराओं का जवाब ढूंढने की कोशिश करता हूँ, लेकिन अक्सर एक ही जवाब मिलता है "चुपचाप जो कहा जा रहा है, करो। कोई धर्म से ऊपर नही है, तुम भी नही" कभी बड़ों के दबाव तो कभी किसी और वजह से सब करना पड़ता है। आज आपके विचार पड़े तो विचारों मे फिर से उबाल आ गया है।

    बहुत सुन्दर लेख है। मै तो आपका मुरीद हो गया।

    By Blogger Jitendra Chaudhary, At 9:11 PM  

  • शुऐब भाई, आपने मज़हब के बारे में विचारों को बड़ी साफ़गोई से व्यक्त किया है। इसके लिये आप निश्चय ही धन्यवाद के पात्र हैं। दिक़्क़त यह है कि लोग मज़हब को स्थिर (satatic) मान लेते हैं और इस वजह से वह रुढिवादिता से परिपूर्ण हो जाता है। अगर मज़हब को भी वक़्त की ज़रूरत के मुताबिक तब्दील किया जाए, तो वह हर युग में उपयोगी हो सकता है।

    By Blogger Pratik Pandey, At 9:59 PM  

  • शाबास शुएब. आज हालात ऐसे हैं कि किसी मुसलमान से ऐसे लेख कि उम्मीद नहीं थी. दुनियां को बेहतर बनाना हैं तो हमे मज़हबी ज़ंजीरो को तोडना होगा. वैसे मैं भी अपने पिताजी कि खुशी के लिए पूजा-पाठ करता हूं और वे मुझे नास्तिक हिन्दू मानते हैं.

    By Blogger संजय बेंगाणी, At 12:46 AM  

  • अतुल अरोरा जीः
    पहले तो शुक्रिया के धर्म पर इतनी अच्छी मिसाल लिखा आपने, ये सब धर्म हमारे परखूँ ने बनाये थे जिसे आगे चल कर लोगों ने नये नये तरीके अपना लिए।

    रमण कौल जीः
    बहतरीन टिप्पणी देने के लिये आप का शुक्रिया, सब लोग मेरे और आपकी तरह कहां सोचते हैं मज़हबी लोगों के दिमाग पर ताले लग चुके हैं जिसकी चाबी ही नहीं है। हमारे देश में इतने सारे धर्म और सबका अलग अलग दिमाग भला कौन समझाये उन्हें?

    Ravi Kamdar भाईः
    मैं ने आप का ताज़ा लेख आप के ब्लॉग पर पढा और उस पर टिप्पणी भी लिखा है, वही टिप्पणी यहां भी लिख रहा हूं
    आपके लेख से ज़ाहिर है आप ने पहली बार अपना पूरा गुस्सा उतार लिया है, ब्लॉग आप का है और आप अपने मन की सब बातें उस पर लिख सकते हैं आप अपने ब्लॉग के राजा हैं। पर मेरी आप से एक गुज़ारिश है के हमें किसी भी धर्म के खिलाफ कुछ लिखने और बोलने का अधिकार नहीं, अगर आप को अपना धर्म पसंद नहीं तो धर्म छोड दो जैसे मैं ने किया है पर धर्म की बुराई न करो। ये धर्म हमारे बुज़रगों ने बनाये थे ताकि उनका खानदान एक होकर रहे मगर उनका ख्वाब चूर चूर होगिया क्योंकि हम एक खानदान से हज़ारों में बंट गये। ये सिर्फ आप ही नहीं बलके आप के जैसे भारत में हज़ारों नौजवान हैं जो अपने धर्मों से बेज़ार हो चुके हैं, हर दिन भारत में मज़हबी फसाद से तंग आगऐ। वो दिन दूर नहीं हमारी आने वाली पीढी सब अपने धर्मों से निकल कर इनसान बनना चाहेंगे।

    Hindi Blogger:
    भाई माफ करना मुझे आप का नाम नहीं मालूम, ये हिन्दी मैं ने खुद इन्टरनेट से सिखा है और टईपिंग भी खुद से। Pratik भाई ने मुझे एक लिंक की तरफ इशारा दिया जहां पर एक छोटा सा सॉफ्टवेर डौनलोड के लिये रखा है जो हिन्दी को उर्दू में ट्रांसलेट करता है जिसे पाकिस्तान के चंद स्टूडंस ने बनाया था। पर मुझे अभी तक ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं मिला जो उर्दू को हिन्दी में ट्रांसलेट कर सके। भारत में कैसे कैसे प्रोग्रामर्स हैं और बहुत सारे अनोखे सॉफ्टवेर बना लिये पर अभी तक किसी भी स्टूडंट ने उर्दू से हिन्दी ट्रांसलेट वाला कोई सॉफ्टवेर नहीं बनाये। मेरे पास ऐसे बहुत सारे पोस्ट हैं जिसे मैं उर्दू से हिन्दी में ट्रांसलेट करना चाहता हूं। रमण कौल जी और दूसरे हिन्दी दोसतों से मेरी गुज़ारिश है के वो इस पर कुछ करें और सोचें। क्योंकि पाकिस्तानी ब्लॉगर्स भारत के खिलाफ बहुत कुछ लिखते हैं, मैं चाहता हूं के हिन्दी ब्लॉगर्स उनका लेख ट्रांसलेट करके पढे और खबरदार रहें जैसे वो हिन्दी को उर्दू में ट्रांसलेट करने का सॉफ्टवेर बना चुके हैं, देखें www.crulp.org

    आशीष कुमार भाई:
    शुक्रिया आप का, लगता है आप ने मेरा लेख पूरा नहीं पढा ;) तभी तो आप ने मुझे दुबारा एक सच्चा मुसलमान बना दिया, खैर एक बार फिर शुक्रिया आप का मेरा लेख पढने के लिये।

    Pankaj Bengani:
    अरे यार आप भी ;) आप ने मुझे ईमानदार कहा बहुत बहुत शुक्रिया, पर भाई ईमानदार के साथ मुसलमान भी लिख दिया तुमने, मुझे बडा दुख हुवा। अगर आप मुझे "ईमानदार इनसान" लिख देते तो कुछ ज़ियादा खुशी होती मुझे। एक बार फिर आप का शुक्रिया।

    प्रत्यक्षा जीः
    ऐसा मैं और आप ही सोच सकते हैं बाकी हमारी सौ करोड जनता कहां सोचती है, बस चले जारहे हैं, रोज़ रोज़ पूजा-नमाज़, गाली गलोच, तोड फोड, दंगे फसाद बस यही है हमारे देश की ज़िनदगी।

    Jitendra Chaudhary भाईः
    पहले तो हम इनसानों सब से में बडी चीज़ अपना दिमाग है, हम बहुत कुछ सोच सकते हैं पर अपने धर्म के बारे उलटी बातें सोचने पर दिल कहता है के "छी - ये कैसी बातें मेरे दिमाग में आ रही हैं?" मैं तो ये कहूँगा के अपने धर्म को अच्छी तरह समझने के लिये थोडी देर धर्म से बाहर अना चाहिये मगर ऐसा चोचना तो लोग बहुत बडा पाप सम्झते हैं। टिप्पणी लिखने के लिये आप का शुक्रिया।

    Pratik भाईः
    मैं ने आप को याद किया और आप हाज़िर। अभी इस टिप्पणी में ऊपर आप ही का ज़िकर किया है, आप ने मुझे हिन्दी से उर्दू में ट्रांसलेट करने का जो लिंक दिया था उस के लिये फिर एक बार शुक्रिया। ये ट्रांसलेट का सॉफ्टवेर पाकिसतानी सटूडंस ने बनाया है, किया ही अच्छा होता आप और रमण कौल जैसे हिन्दी दोसत मिलकर कुछ छोटा सा उर्दू से हिन्दी ट्रांसलेटर बनायें तो कई लोगों का भला हो सकता है। दूसरी बात बच्चा जब पैदा होता है तभी से उसके उसको नन्ने दिमाग में मज़हब को ठोंस देते हैं और वो कुछ बडा होकर अपने माता-पिता को देखते हुवे और भी पक्का मज़हबी बन जाता है फीर वो मज़हब से हट कर दूसरा कुछ नहीं सोचता।

    Sanjay Bengani भाईः
    आप उम्मीद रखें मुझ जैसे देश में और भी हैं जो मज़हब से बेज़ार हो चुके हैं। यहां सभी टिप्पणियों से ज़ाहिर है के हम सब देश में एक मज़हब एक कानून चाहते हैं ताके देश में फिर कभी दंगे-फसाद न हों। ये मज़हब ही है जो हम सब को एक दूसरे का दुशमन बना दिया है भले हम आपस एक-दूसरे के मित्र हों फिर भी दिल में नफरत होती है। आ औ हम सब जो गिनती के लोग हैं सब मज़हब से निकल कर एक होजाऐं, हमें प्यार चाहिये, दोसती भी चाहिये ताकि हम अमन से रह सकें।

    By Blogger Shuaib, At 8:52 AM  

  • शुयेब भाई

    लो हम अपनी गलती सुधार लेते है, आप एक सच्चे ईन्सान है.

    क्या आपने "स्वामी वाहिद काज़मी" को पढा है ?
    एक बार उन्हे पढकर देखिये. वे मेरे प्रिय लेखको मे से है. उन्होने मजहबी संकीर्णता पर जितना प्रहार किया है उतना और कीसी ने नही.

    http://rachanakar.blogspot.com/2005/09/blog-post_20.html
    http://rachanakar.blogspot.com/2005/08/blog-post_26.html
    http://rachanakar.blogspot.com/2005/10/blog-post_29.html
    http://rachanakar.blogspot.com/2005/10/blog-post_03.html

    आपका
    आशीष
    खालीपीली

    By Blogger Ashish Shrivastava, At 4:08 AM  

  • आपका ब्लॉग पहली बार पढ़ा और आपके नए विचाए देखकर बहुत प्रसन्नता हुई। ऐसे ही लिखते जाइये!

    By Blogger Dharni, At 6:45 PM  

  • शुऐब,
    पढ़ने में थोड़ी देर हो गई लेकिन वाकई एक मुसलमान के लिए इस तरह की बात करना बहुत हिम्मत का काम है। काश आप जैसे और हिन्दू-मुसलमान होते जो मुल्क को मज़हब से ज़्यादा तरजीह देते तो कितना अच्छा होता। मैने अपनी जिंदगी मे इतना ईमानदार मुसलमान नही देखा.

    By Blogger Tarun, At 8:40 AM  

  • बिलकुल सहमत हूँ - पहले देश बाकी सब बाद में. यदि कोई भी धर्म देश की उन्नति, शाँति या अखंडता को खतरा पहुँचाता है तो गोली मारो ऐसे धर्म को - अरे भैय्या अगर देश ही नहीं रहेगा तो हम सब धर्म का मुरब्बा डालेंगे क्या?

    काश सारे भारतीय ऐसे सोच पाते...

    By Blogger अतुल श्रीवास्तव, At 10:28 PM  

  • shuheb bhai aapake vichar bahut hi saf hai........

    By Blogger Vikas Kumar, At 5:23 AM  

  • शोएब भाई, आज आपके ब्लॉग तक पहुँच पाया हूँ। और आपके विचारों को पढ़ कर मुझे अब ये लगने लगा कि मैं इस दुनिया में अकेला नहीं हूँ जो ऐसा ही दृष्टिकोण रखते हैं जैसा कि मैं रखता हूँ बस फर्क सिर्फ इतना है कि मैं एक हिन्दू राष्ट्र और हिन्दू परिवार से हूँ और आप मुस्लिम राष्ट्र और मुस्लिम परिवार से है। मैं आपके इस लेख से बहुत प्रभावित हूँ और मैं चाहता हूँ कि आपके इस लेख को अपने शब्दों में अपने ब्लॉग पर भी लिखूँ। आशा है आप मुझे इसकी इजाज़त देंगे। और आगे भी मैं चाहूँगा आप इसी तरह लिखते रहें मैं आपके साथ हूँ।

    By Blogger SD, At 5:43 AM  

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