नई बातें / नई सोच

Thursday, March 30, 2006

ये दुबई नहीं केरला है

बाकी भारतीयों का खयाल है के यहां का मार्केट मलबारीयों ने ही खराब किया है, अब आप ही देखिए हैदराबाद का एक लडका दुबई की एक कम्पनी में secretary जॉब के लिए इन्टरव्यू देने आया, जब salary की बात हुई तो उस लडके ने 3 हज़ार दिरहम मांगे (35,000 Indian) किसी भी professional के लिए यहां की salary ३००० दिरहम से शुरू होती है, इन्टरव्यू लेने वाले ने अपने दफ्तर में काम कर रहे एक मलबारी को बुलाया और उस हैदराबादी लडके से कहा देखो ये भी यहां secretary का जॉब करता है और तनखवा 1500 लेता है, तुम हो की 3000 मांग रहे हो।

जिस तरह भारत में किसी भी छोटी नौकरी के लिए salary ३००० से शुरू होती है यहां UAE में भी यही रिवाज है। सब का खयाल है के यहां मलबारियों ने सस्ते में काम करके भारती workers को और भी चीप बना दिया है। मलबारी लोग आरबों के चहीते हैं वो इस लिए के अगर हम किसी अरबी को हिन्दी में गाली दें तो मलबारी फौरन ट्रांसलेट करके आरबी को सुना कर शाबाशी वसूल कर लेते हैं। मैं ने सुना आरब लोगों को गिनती करना भी नहीं मालूम था मलबारियों ने उन्हें गिनती और नाप तोल करना सिखाया।

अब मेरी ही बात लेलें, मैं ग्राफिक डिज़ाईनर हूं और मेरी salary ३,५०० के साथ कम्पनी ने रूम और transportation भी दिया है। छे: महीने पहले इसी कम्पनी में एक मलबारी ग्राफिक डिज़ाईनर आया जो सिर्फ २,५०० (26,000 Indian) में काम कर रहा है तब से मालिक मुझ पर नज़रें गाढ कर बैठा है फिर भी खामोश है क्योंकि उस मलबारी डिज़ाईनर में मुझ से ज़ियादा experience नहीं है। अरब लोग दूसरे भारतीयों को भी मलबारीयों की तरह चीप सम्झते हैं, लेकिन ये बात नहीं के यहां भारतीयों की कदर नहीं, यहां यूरोप और अमेरिकन कम्पनियाँ भारती professionals की बहुत इज़्ज़त करते हैं और अच्छी salary भी देते हैं। पर मेरा मालिक तो अरबी है ;(

Monday, March 27, 2006

3D xara पर एक नज़र

अपनी वेब साईट और ब्लाग्स पर जगमगाहट वाले titles और logos बाना सब को पसंद है ताकि अपने एलेक्ट्रॉनिक पन्ने पर और चार चांद लगें। ऐसे वेब डिज़ाईनर्स जिनहें animation के बारे में ज़ियादा नहीं मालूम और वो छोटे मोटे animated logo बनाना चाहते हैं, ऐसे लोगों के लिये xara का 3D सॉफ्टवेर अच्छा रहे गा जहां आप सिर्फ एक मिनट में जगमगाहट वाले titles, buttons, logos और headlines वगेरा आसानी से बना सकते हैं। इस सॉफ्टवेर की कीमत 44.99 US है इसके अलावा 15 दिनों के लिये ट्रायल वरज़न भी मौजूद है और xara की वेब साईट पर ज़िनदगी भर के लिये मुफ्त खौरी भी दस्तियाब है जहां पहले से ये सॉफ्टवेर इन्सटाल है और आन-लाईन रहते हुवे सिर्फ एक मिनट में अपनी पसंद का text animate करके gif फॉर्मेट में बनाकर क्म्प्यूटर पर डोनलोड कर सकते हैं। इस सॉफ्टवेर में दूसरी खूबियाँ भी हैं जैसे अपनी पसंद का 3D स्क्रीन सेवर और फोटोस पर सपेशल एफेक्टस वगे बना सकते हैं।

xara 3D के चंद नमूने





















Friday, March 24, 2006

ये दुबई है




































Monday, March 20, 2006

मैं मुसलमान क्यों नहीं

इस का जवाब मुझे मालूम है, मेरे उर्दू ब्लॉग पर अकसर दूसरे उर्दू ब्लॉगर्स मुझ से पूछते रहते हैं कि आखिर इस्लाम के खिलाफ तुम्हारे विचार ऐसे क्यों हैं? कई बार मैं ने अपने उर्दू ब्लॉग पर मुखतलिफ तरीके से जवाब लिखा था और वही लेख यहां अपने इस हिन्दी ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूं।

मुझे मशहूर होना बिलकुल पसंद नहीं, मैं हमेशा सबसे अलग रहता हूं क्योंकि मेरे विचार दूसरों से बिलकुल नहीं मिलते। मैं ने दिल की भडास निकालने यों ही अपने उर्दू ब्लॉग पर लिखना शूरू किया था और उर्दू पढने वालों ने मुझे खूब गालियों के साथ टिप्पणियाँ लिखे और मुझे काफिर (हिन्दू) भी कह दिया। चंद ऐसे भी उर्दू ब्लॉगर्स थे जो मेरे विचारों को समझा और मेरे लेख को बिलकुल सही कहा क्योंकि बहुत सारे पढे लिखे लोग समझ चुके हैं के मज़हब (इस्लाम) किया है।

मैं ने अपने उर्दू ब्लॉग पर कभी इस्लाम के खिलाफ कुछ नहीं लिखा सिर्फ मज़हब से अपनी बेज़ारगी लिखा है और मुझे किसी भी मज़हब के खिलाफ लिखने का हक नहीं। मैं सभी धर्मों की इज़्ज़त करता हूं मगर आज़ाद खयाल इनसान हूं, मुझे अपने देश का कलचर बहुत प्यारा है कहीं हिन्दू-मुसलिम फसाद है तो वहीं आपस में प्यार और दोसती भी है, ऐसा कलचर भारत के सिवा दुनिया में दूसरी जगा कहीं देखने को नहीं मिलता।

मेरे मां-बाप और उनका पूरा खानदान सभी बंगलौर के शहरी हैं मगर हैं पक्के इसलामी, सभा-शाम नमाज़ें, कुरान और चौबीस घंटे यों ही इस्लाम की पाबंदी करते गुज़ार देते हैं। माता-पिता दोनों हमेशा मेरे लिये परेशान कि उनका एक बेटा जिसके दिल में खुदा का ज़रा भी खौफ नहीं, नमाज़-रोज़ा कि पाबंदी नहीं करता - दिन में एक काम भी इसलामी नहीं करता। आज भी मेरी मां फोन पर पूछ लेती हैं के वहां रोज़ाना नमाज़ पढता है कि नहीं? वो मेरी मां है मैं उसे नाराज़ नहीं करना चाहता भले वो पक्की मुसलमान औरत है, उसे नाराज़ किये बगेर मैं हमेशा जूठ बोलता हूं "हां अम्मी, तुम फिक्र न करो मैं रोज़ाना पाबंदी से नमाज़ पढ लेता हूं।"

मैं अपने आप को मुसलमान नहीं मानता मगर अपने मां-बाप की बहुत इज़्ज़त करता हूं, सिर्फ और सिर्फ उनको खुश करने के लिये उनके सामने मुस्लमान होने का नाटक करता हूं वरना मुझे अपने आपको मुसलमान कहते होवे बहुत गुस्सा आता है। मैं एक आम इनसान हूं, मेरे दिल में वही है जो दूसरों में हैः जूठ, फरेब, ईमानदारी, बे ईमानी, अच्छी और बुरी आदतें, कभी शरीफ और कभी कमीना बन जाता हूं, कभी किसी की मदद करता हूं और कभी नहीं - ये बातें तो हर इनसान में कॉम्मन हैं। एक दिन अब्बा ने अम्मी से गुस्से में आकर पूछाः किया शुऐब हमारा ही बच्चा है? तो वो हमारे तरह मुसलमान क्यों नहीं? कयामत के दिन अल्लाह मुझ से पूछे गा के तेरे एक बेटे को मुसलमान क्यों नहीं बनाया, तो मैं किया जवाब दूँ? पहले तो अब्बा और अम्मी ने मुझे प्यार से मनाया फिर खूब मारा-पीटा के हमारे तरह पक्का मुसलमान बने।

यहां दुबई में दुनिया भर के देशों के लोग रहते हैं, हैं तो ज़ियादा तर मुसलमान। मुझे शुरू से मुसलमान बन्ना पसंद नहीं और यहां आकर सभी लोगों को करीब से देखने और उनके साथ रहने के बाद अब तो इस्लाम से और बेज़ारी होने लगी है। मैं ये हरगिज़ नहीं कहता के इस्लाम गलत है, इसलाम तो अपनी जगा ठीक है मैं मुसलमान और उनके विचारों की बात कर रहा हूं।

मुझे बहुत खुशी होती है के मेरा कोई मज़हब नहीं मैं आज़ाद हूं, अपनी मरज़ी का राजा मगर मैं देश के कानून का पालन करता हूं, दूसरे सभी धर्मों को इज़्ज़त की नज़रों से देखता हूं। मूझ में धर्म नहीं तो इस का मतलब ये नहीं के मैं जाहिल या आतंकवादी हूं। मैं तो सीधा सादा इनसान हूं, मेरा किसी से कुछ लेना-देना नहीं, मैं अपने आप में हमेशा खुश रहता हूं। मुझे धर्म इस लिये पसंद नहीं क्योंकि ये कोई आसमान से नहीं उतरा बलके मेरा यकीन है ये धर्म पूराने ज़माने के किसी ने अपने कुंबे को एक जुट करने के लिये ग्रोह बनाऐ फिर उस को मानने वालों ने आगे चल कर धर्म की शकल अपनाली। मेरी नज़र में सब से अच्छा धर्म इनसानियत है और इस से अच्छा धर्म मेरे नज़दीक दूसरा कोई नहीं।

यही बातें मैं अपने उर्दू ब्लॉग पर लिखा तो पढने वालों ने मुझे खूब बुरा कहा और कहा के मैं अपना नाम बदली करों, मुसलमान से हिन्दू होजाऊं और बहुत कुछ कहा के मैं मुसलिम मुल्क में रहते होवे ऐसी बातें अपने ब्लॉग पर लिखता हूं वो दिन दूर नहीं जब मोलवी लोग तुम्हारे कतल का फतवा (ऐलान) कर देंगे, वगेरा वगेरा। हर एक को अपने दिल की बात कहने की पूरी आज़ादी है, मैं ने अपने उर्दू ब्लॉग पर popup में लिख दिया के "इस ब्लॉग पर सभी लेख अपने ज़ाती विचारों पर है न के किसी दूसरे के दिल को चोट करने के लिये, इस लिये मेहरबानी करके सभी लेख को पढते समे बुरा न मनाये क्योंकि ये मेरी ज़ाती डाईरी है। अगर कुछ बुरा लगे तो क्रपया माफ करें।" मैं ये हरगिज़ नहीं चाहता कि मेरा ब्लॉग दूसरा कोई पढे, ये मेरी आन-लईन डाईरी है पर है तो आन-लईन जिसे हर कोई पढ सकता है, इस लिये मैं ने popup पर लिख छोडा। दुनिया में सिर्फ मैं अकेला ही नहीं मुझ जैसे और भी हैं, मेरे उर्दू लेख पर बहुत सारों ने मुझे बधाई भी दी के तुमहारे बहुत अच्छे विचार हैं, अगर हर कोई तुमहारी तरह धर्म से बाहर आकर देखे तो उसे दुनिया जन्नत दिखाई देती है मगर मज़हबी लोग ऐसा करने को बहुत बडा पाप समझते हैं।

मैं घर जाऊँ तो मां-बाप मेरी शादी किसी ऐसी लडकी से करवा दें गे जो देनदार (पक्की मुसलमान) हो, और मैं उस मासूम लडकी की नज़रों में पापी जिसे खुदा पर ज़ारा भी यकीन नहीं। पता नहीं मेरी हम-खयाल लडकी कहां मेले गी, पर मुझे पूरा यकीन है के मेरे लायक कोई लडकी नहीं है, अगर शादी हो भी गई तो मेरी पत्नी पूरी ज़िनदगी परेशानी में रहे गी के किस क़िस्म के शख्स से मेरी शादी होई जो न हिन्दू है न मुसलमान? खैर मैं तो दुबई में हूं और यहां शादी-वादी की कोई ज़रूरत नहीं, ये है तो मुसलिम मुल्क पर यहां अपने आप को धोका दे सकते हैं के मुझे कोई नहीं देखता पर वहां भारत में कोई बुरा काम करो तो सब याद आजाते हैं भगवान, खुदा, जीस्स, हनुमान, बाबा, पत्नी, ब्च्चे, मां-बाप वगेरा वगेरा और यहां दुबई में कोई किसी का नहीं।

मुझे इस की कोई फिक्र नहीं के मरने के बाद मेरा किया होगा? मैं ने जन्नत देखली है, हां दुनिया मेरे लिये जन्नत है। मुझे बहुत खुशी होती है जब मैं किसी की मदद करता हूं, दूसरों के दुख-सुख में साथ दूँ ऐसा करते होवे मुझे बहुत अच्छा लगता है और जीने में आनंद भी आता है। 16 बरस से लेकर अठारा बरस तक मुखतलिफ अख़बारों में नौकरी किया है मैं ने, तकरीबन पूरे आठ साल तक मैं ने नईट ड्यूटी किया क्योंकि अख़बारों में front page composing रात को होती है और मैं सभी अख़बारों में front page composer के अलावा Add डिज़ईनर भी था। मां को मेरी नईट शिफ्ट बिलकुल पसंद नहीं थी ये मेरी मजबूरी थी क्योंकि दिन में मैं पढाई करता था। यों अख़बारों में काम करते मैं ने अपनी पूरी जवानी मीडिया में गुज़ारदिया और मीडिया में रहते मुझे मज़हब का अच्छा तजरबा भी होवा। मैं छे साल तक बंगलौर के एक उर्दू अखबार में भी काम किया है, वहां मुखतलिफ लोगों के साथ रहते मेरे मन से पूरी तरह मज़हब को निकाल ही दिया। मैं ये नहीं कहूँगा के किया सच है और किया जूठ, पर मैं जैसा भी हूं अपने आप में बिलकुल सही जा रहा हूं। मैं दूसरों को नहीं कहता के आप भी मेरी तरह सोचें क्योंकि मैं जो सोचता हूं उसे लोग गुनाह सम्झते हैं और मैं उसे सही जीवन मानता हूं।

मैं सिर्फ मां-बाप के डर से नमाज़ पढता था, उनको खुश करने के लिये रोज़े भी रखता था पर मेरा मन ये सब करने की इजाज़त नहीं देता। मुसलिम दोसत मेरे विचारों को देखते होवे मुझ से खफा हैं, माता पिता भी मेरे विचारों से परेशान हैं के मरने के बाद उनके बेटे का किया होगा? मां-बाप हमेशा मुझे नसीहत करते नहीं थकते, उनहें शक है के उनके बेटे पर किसी ने जादू किया है। अपने मां बाप से ये कहते होवे मुझे बहुत शर्म आती है के मैं मुसलमान नहीं हूं और न ही मुझे मुसलमान बनना है। ये सुनकर मेरे माता-पिता को बहुत दुख होगा और मैं अपने मां बाप को दुख नहीं देना चाहता, मेरे मां बाप जैसे भी हैं वो अपनी जगा ठीक हैं और मैं कोन हूं? किया हूं? ये मुझे मालूम है के मैं किया हूं - मेरे अंदर इनसानियत है और मैं सिर्फ इनसान हूं।

अमेरिका से एक पाकिसतानी ब्लॉगर लिखते हैं Why I am Not a “Muslim”

Friday, March 17, 2006

छुटटी पर

मैं एक महीने की छुटटी पर अपने घर बंगलौर जा रहा हूं। यहां सम्मर शुरू हो चुका है और यहां भारती इतने हैं कि बाकी लोग चार-पांच दिखाई देते हैं, यहां इनडियन स्कूलों में सम्मर की छुट्टियां शुरू होचुके और यहां पढने वाले बच्चे भारत में अपने नाना-नानी से मिलने एक महीना पहले ही हवाई जहाज़ की टिकटें बुक करवा चुके, पूरे १५ दिनों तक के लिये बंगलौर, मुम्बई और दिल्ली सभी हवाई जहाज़ फुल हैं। थोडी भाग दौड करने के बाद आखिर मुझे ऐर अराबिया का टिकट मिला। ऐप्रल १० को मुझे अपने घर पहुंचना है, घर से बार बार फोन आने लगे कि ये चाहिये वो चाहिये, अभी से मांगें शुरू करदीं। सबसे हां कहा मगर मैं तो वही ले जऊँगा जितनी मेरी हैसियत है। चंद लोग दुबई को जन्नत समझते हैं कि यहां पैसों की बारिश होती है। यहां लोग मुम्बई कि तरह रात दिन पसीना बहाते हैं तब जाकर थोडे पैसे मिलते हैं।

Wednesday, March 08, 2006

उसामा से एक मुलाकात

आखिर आप अपने बिल से बाहर कब आ औ गे?
"पहले अमेरिका को वादा करना चाहिये कि हमें एक आम शहरी की ज़िनदगी गुज़ारने का मोका दिया जाए गा"

किया आप ने कभी खुल्लम खुल्ला जिहाद किया है?
"जी हाँ अपने ही घर वालों से"

सुना हे आपके पिता की जादाद का हिस्सा आप को मिल गया।
"हरगिज़ नहीं, मेरा मतलब हे जितनी उम्मीद थी उतना नहीं मिला"

ज़रा सोचें अगर आप अमेरिका के शहरी होते?
"तो मैं उसामा बिन लादिन से हरगिज़ नफरत नहीं करता"

अपने ग्रुप के बारे में किया विचार हैं?
"बहुत ही बहादुर ग्रुप था अपना, अमेरिका के गज़ब से सब फरार हैं"

अपने ग्रुप से अभी भी राबता है कि नहीँ?
"बहुत मुशकिल है, हमारी आखरी उम्मीद 'अल-जज़ीरा' पर भी अमेरिका ने पानी भर दिया"

मान लो कि अमेरिका ने आप को माफ़ कर दिया।
"तो अमेरिका कि लिये हमारी जान कुरबान, मेरे बच्चों को अमेरिकी फौज में भरती कर दूंगा ताकि वे दुनिया भर में आतंकवादियों से लड कर शहीद हो जाऐं"

औह -- तो आप नेक विचार भी रखते हैं!
"किया करें? खुली फिज़ा में सांस लेना चाहता हों"

किया ऐसा नहीं कर सकते कि फिर से अपने ग्रुप को और मज़बूत बना लें?
"ऐसा सोचना भी मुमकिन नहीं, पहले की बात अलग थी हमारे अनदर जोश व जज़बा था। अब हमारा ग्रुप पूरी तरह बिखर चुका है"

अपनी फिलहाल की ज़िनदगी पर रोशनी डालें?
"फिलहाल बगेर रोशनी के कमरे में ज़िनदगी गुज़ार रहा हूँ"

अकसर लोग समझते हैं कि आप मर चुके हैं।
"काश अमेरिकी फौज भी यही समझले"

किया आप पूरी ज़िनदगी छुपते ही रहेंगे?
"हरगिज़ नहीं, मगर आसार यही बता रहे हैं"

अपने आने वाले कल के बारे में किया सोचा है?
"रोज़ाना सुबह से शाम तक यही सोचता हूँ"

फिलहाल आपकी पत्नियों और बच्चों का किया हाल है?
"वे सब अपने अपने घरों में नज़र बंद हैं"

किया आप को अपनी पत्नियों कि याद नही आती?
"फिलहाल हमारे एक साथी ने उनकी बहन से हमारी शादी का आफर दिया है"

चलो छोडो इन सब बातों को, पहले ये बताऔ किया सोच कर अमेरिका को लताडा था?
"हमने?? हा हा हा --- किया मज़ाक है, भला हम अमेरिका को कैसे लताड सकते हैं?"

जी हाँ! आप ने अमेरिका को लताडा फिर अमेरिकी फौज ने आपके ग्रुप पर हमले किये और आज तक आप को ढूंडती फिर रही है।
"जनाब ये सब मीडिया कि खबरें हैं, हम तो अमेरिका के गुलाम हैं, इसी के कहने पर हम ने हत्यार उठाऐ, उसी के कहने पर जिहाद के नारे लगाऐ, उसी के कहने पर हम ने बार बार अपना video tape बनाया। हम ने जो भी किया सब अमेरिका के हकम पर ही किया है और ये भी उसी का फरमान है कि हम छुपे रहें"

ये आप किया कह रहे हैं? कुछ समझ में नही आया।
"आप नहीं समझो गे क्योंकि ये सब world politics है"

तो अब तक आप किया बक रहे थे?
कुछ नहीं, हम तो आप के साथ Time पास कर रहे थे!"

Tuesday, March 07, 2006

फौटुशोप और यूनिकोड