नई बातें / नई सोच

Tuesday, May 30, 2006

लककी नम्बर

हमारी कम्पनी हर दो महीने में एक बार फैशन शो करवाती है क्योंकि इसके बहुत सारे बरान्ड्स हैं जिसकी पबलिसिटी करवाना इसका फर्ज़ है और हम तो परदे के पीछे काम करने वाले लोग हैं।
एक बार मुझे कुछ सामान लेकर परदे के पीछे पहुंचना था थोडी सी देर हो गई तो अपनी कम्पनी से एक एन्ट्री पास उठालिया क्योंकि फैशन शो फाई स्टार होटल में था। ऐसे फैशन शोज़ पर दूसरी बहुत सारी कम्पनियाँ स्पॉनसर्स भी होती हैं। फैशन शो के हाल में घुसने से पहले मैं ने अपना पास दिखाया तो मुझे एक परची दी के अपना नाम, पता और फोन नम्बर भरती करके इस बक्से में डाल दो, तो मैं ने वैसा ही किया।

सिर्फ फैशन शो के हॉल में ही नहीं बल्कि परदे के पीछे भी एक कयामत मची हुई रहती है जहां पर मॉडल्स को इशतेहारों के साथ सजाना पडता है जिसके लिए अलग लोग होते हैं यानी हमारी कम्पनी के ऊंचे पोस्ट वाले वगेरा। रात साढे बारह बजे फैशन शो कतम हुवा और फिर लककी नम्बर्स का ऐलान हुवा, एक एक परची खोल कर नाम पुकारा और तोहफे बांटे। और ऐसा भी वकत आया जब मेरा नाम स्टेज पर पुकारा जाने लगा, दुनिया में मेरे नाम वाला मैं अकेला तो नहीं शुऐब अखतर भी तो है। दुबारा नाम के साथ जब मेरा मोबाईल नम्बर भी पुकारा तो मेरे होश उढ गऐ क्योंकि वहां तोहफे बांटने वाला कोई और नहीं हमारा ही बॉस था। तोहफे तो बाहर से आने वालों यानी विज़ीटर्स लोगों के लिए थे जो इस फैशन शो पर कुछ ना कुछ खर्च भी किया था। चंद शरीर मित्रों ने मुझे पकड कर स्टेज पर ला छोडा जहां माईक पर मेरा नाम अब तक तीन बार लिया जाचुका था। बॉस ने मुझे देखा और दांत पीसते होवे तोहफा मेरे हाथों पर ज़ोर से रखा और अपनी गरदन हिलाई जैसे कह रहे हों "देखलूंगा" फिर पूरे हॉल में ज़बरदस्त तालियों की आवाज़ गूँजी।

इस बात को ज़माना हुवा, मैं ने अपने बॉस को एक बार बताया भी था कि मुझे ये हरगिज़ यकीन नहीं था कि परची लिख कर डालने पर मेरा ही नाम लककी साबित होगा। और आज जब भी बॉस मुझे अपने केबिन में बुलाता है कुछ काम देने के लिए तो मेरी तरफ देखते हुवे अपने दांत ज़रूर पीसता है।

Friday, May 26, 2006

डरना फालतू है

हर दिन ईरान को आंख मारते हुवे अमेरिका लगातार सवाब पा रहा है जबकि वो अच्छी तरह जानता है कहीं कहीं आंख मारने पर मुँह की खाने के साथ जूते भी खाने पडते हैं।

पिछले चंद दिनों में तूफाना कि वजा से चैना की चीखें निकल पडीं अब वो खुश है कि इस वकत तूफाना भारत की ओर बढ रहा है।

सैरिया के राष्टरपति बशर अल आसद पिछले छः माह से ज़मीन पर अपना माथा टिकाए पडे हैं और खुदा को याद करने कि बजाए अमेरिका को भुलाने की कोशिश कर रहे हैं, वो समझाने लगे के अमेरिका से जान छूटी जबकि वो अच्छी तरह जानते हैं कि ईरान से वापसी पर अमेरिका सैरिया भी आ सकता है।

उधर लिबया के चिकने राष्टरपति जनरल गदाफी जान चुके हैं कि अमेरिका कि गुलामी के बगेर कोई चारा नहीं। फिलहाल वो रात दिन अमेरिका की इबादत में लगे हैं क्योंकि पिछले पंद्रह वर्षों से अमेरिका ने इन्हें नाकों चने चबवाए थे और आज अमेरिका के आगे घुटने टिकाने के बाद उन्हें महसूस हुवा कि वो सांस ले सकते हैं।

ईधर पडोसी खुददार नेता जनरल मुशर्रफ बार बार अपनी घडी देखते हुवे खिडकियों से खुदा को तलाश कर रहे हैं जबकि उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि खुदा इस वकत अमेरिका का मेहमान है। दूसरी तरफ दोनों भाई-बहन मियाँ नवाज़ शरीफ और बेनज़ीर भट्टू पाकिस्तान पहुंच रहे हैं ताकि मुशर्रफ का आख़िरी कार्यक्रम अपनी आंखों से देख सकें।

अमेरिकी ऊंट यानी अफगान के राष्टरपति हामिद कर्जदार अपने बिछडे भाईयों से मिलने रोते हुवे दुबाई पहुंचे इस उम्मीद के साथ के अफगानी सदा सुहागन रह सकें। अते ही अपने अरब भाईयों के कन्धे पर सर रख कर खूब रोया और बताया कि किस तरह अमेरिका को पूजने पर आज अफगान पल फूल रहा है। अरब भाईयों ने दिलासा दिया के अमेरिका को सिर्फ तुम नहीं हम भी पूजते हैं और इसमें कौनसी शर्म की बात है और कौन नहीं चाहता कि वो खुल कर सांस ले? अरब भाईयों ने वादा भी किया के अब पहले से ज़्यादा अफगान को दान भेजेंगे और साथ में लगान भी हासिल करेंगे। मौका पाकर अफगानी के राष्टरपति ने भारत की शिकायत कर डाली वो वादे बहुत करता है पर ज़्यादा कुछ नहीं भेजता।

ईसाइ बिरादरी का Davinci Code पर गुस्सा फिल्म बनाने वालों को बडा अजीब लगा, अपने ही लोग काटने को आते हैं। भाई नया ज़माना है और अभी कब तक पुराने किस्सों को याद करते रहोगे। कम से कम फिल्मों को तो मनोरंजन की तरह देख लो भले इसमें ईसा, खुदा और शिव तीनों एक साथ हों।

बॉलीवुड की खूबसूरत बला ऐश्वर्या राय पहले से मशहूर थीं पर अब क्या वजा है कि अपनी मौत की झूठी खबर फैला कर और ज़्यादा मशहूरी चाहती हैं। भले ये झूठी खबर किसी और ने फैलाई हो पर फैदा तो ऐश को ही हुवा। मौत की झूठी खबर सुनते ही उनके चाहने वाले दीवानों ने चैन से सांस लिया इस उम्मीद से कि उनकी जगह कोई दूसरी खूबसूरत बला आएगी।

राम गोपाल वर्मा जो सबको ज़बरदस्ती डराने निकले थे, अब शायद वो दुबारा डराने और खौफ ज़्दा करने की कोशिश न कर सकें। माना कि डरना मना है में थोडा डराने कि कोशिश की पर अब उनकी नई फिल्म डरना ज़रूरी है ने साबित कर दिया कि "डरना फालतू है"।

Tuesday, May 23, 2006

ज़रूरत है एक पत्नी की

नाम मुजीब, उम्र 32 और थोडा सा टक्ला। यहां अपने प्रोडक्शन डिपार्टमंट में इसका पोस्ट आँफिस बोई है फिलहाल Tie और Jeans प्रोडक्शन में शामिल हो गया, तनखा उवर टाईम मिला कर 25 हज़ार इनडियन लेता है, दिल का बहुत अच्छा है पर हमेशा चिड चिड करता रहता है। ये हे तो बहुत ही कनजूस पर इससे दूसरों का दर्द केखा नहीं जाता अगर कोई कर्ज़ पूछे तो आंख मूंद कर दस-पंद्रह हज़ार यों ही दे देता है और अगर कुछ ज़यादा रहम आजाए तो पांच हज़ार तक दान देने को तैयार है। पांच वर्ष तक वो सौदी अरब में नौकरी किया और पिछले तीन वर्षों से यहां दुबाई में अपने ही कम्पनी में नौकरी कर रहा है। सौदी अरब की कमाई से बेंगलौर में अपना एक मकान भी बनवालिया और बहुत ही मुशकिलों से अपनी बहनों की शादियाँ भी करवादी। इसको भारत से यहां बहुत सारे रिश्ते आए पता नहीं इस ने रिजेक्ट किए या वहां से रिजेक्ट हुवे पर वो अपनी शादी को लेकर हमेशा परेशान रहता है और ऊपर से ढलती उम्र। कहता है अगर इस वर्ष में शादी नहीं होई तो वो दुबाई के किसी कोठे पर चला जाएगा क्योंकि अब बरदाश्त नहीं करसकता। वो यहां कम्पनी के हर एक डिपार्टमंट्स में जाकर खुजली करता है मैनेजरों को भी छेडता है सुबह-शाम सबको छेडता है पर जब कोई उसे छेडे या उसका मज़ाक उडाए तो उससे बरदाश्त नहीं होता और दो दिन तक किसी से बात नहीं करता फिर तीसरे दिन नरमल हो कर सबसे मिलजाता है। वो हर हफ्ते अपने बहुत सारे फोटो खिंचवा कर भारत में अपनी बहनों को भेजता है कि उसके लिए कोई लडकी देखें। उसकी बहनें भी बेचारियाँ ढूंड ढुंड कर अब तक दो दर्जन लडकियों के फोटो और उनके प्रोफाईल भेजे और आज तक वही सिलसिला चल रहा है। मुजीब चिडचिडा है, कनजूस है, हर दिन सबसे हंसी-मज़ाक और लडाई झगडा करता है पर वो दिल का बहुत अच्छा इनसान है जिसकी मैं गारन्टी देता हूं। है कोई लडकी जो मुजीब को अपना कर उसे सुधारे? धन्यवाद
(दहेज लेना और देना पाप है)

Saturday, May 20, 2006

डिब्बों का मसला

भारत में सिर्फ दो बार नेट यूज़ किया जब पिछले महीने मैं छुटटी पर घर गया था। वहां आज भी अक्सर वेब सेन्टरों में क्म्प्यूटर पर Win98 इन्सटाल है और जब अपना ये ब्लॉग देखा तो मेरे सभी लेख डिब्बे बन गए, दूसरे हिन्दी ब्लॉग्स और नारद की साईट भी देखा वहां भी हिन्दी text डिब्बे बने हुवे थे। मुझे ये यूनीकोड के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है। भारत में रहने तक मैं ने एक दो बार कोशिश की के साथी ब्लॉगर्स के लेख पढ लूँ पर शायद win98 कि वजा से और शायद मेरी कम स्मझी की वजा से सभी चिटठों में सिर्फ डिब्बे देखने को मिले।

वापस दुबई आया तो नारद जी के पन्ने इतने भरे हुवे हैं कि समझ में नहीं आ रहा कहां से शुरू करूं? और रमण कौल जी का ब्लॉग तो कई दिनों से खुलता ही नहीं पता नहीं क्यों? भारत जाने से दो महीना पहले ये हिन्दी ब्लॉग शुरू किया और तभी हिन्दी में टेपिंग सीखा था शुक्र है वापस आने के बाद किबोर्ड पर उँगलियॉ सही जगा चल रही हैं।

अभी तक मेरी समझ में ये नहीं आया कि ब्लॉग्स पर text की जगा डिब्बे क्यों नज़र आते हैं और हिन्दी का फाँट डाउनलोड करके इन्सटाल करने के बावजूद भी! यहां मेरे कमरे में अपना कम्प्यूटर है जिसमें कोई मसला नहीं पर जब नेट यूज़ करने के लिए किसी साईबर सेन्टर जाता हूं तो ये डिब्बे वाला मसला हमेशा मेरे साथ रहता है। और यहां पर नेट कनेक्शन लेना उससे भी बडा मसला है इस लिए आज तक मैं ने अपने कमरे में नेट कनेकशन नहीं लिया। फिलहाल ऐसा करता हूं के नेट यूज़ करने के लिए साईबर सेन्टर जाऊँ तो अपनी USB Drive भी साथ लेकर जाऊँगा और चिटठे copy करके अपने घर मेरे कम्प्यूटर पर पढ लूँगा क्यों के मेरे कम्प्यूटर पर हिन्दी फाँट और यूनिकोड का कोई मसला नहीं सब सही है जिसमें Win2000 इन्सटाल है।

Tuesday, May 16, 2006

बेंगलोर

जिसे बाघों का शहर भी कहा जाता था


























Monday, May 15, 2006

ऐसी रही यात्रा

घर पहुंचने के बाद सबसे मिलकर गिले शिकवे दूर होवे, अम्मी ने ज़बरदस्त खाना बनाया था, उधर सामने टीवी के खबरी चैनलों पर मीरठ का जलता हुवा मेला लोगों की चीखें औरतों का मातम और यहां मेरे आने की खुशी में ज़बरदस्त हंगामा, हंसी मज़ाक आधी रात तक शोर-शराबा और यों पहला दिन गुज़र गया।

दूसरे दिन सुबह बारह बजे उठ कर घर से बाहर निकला तो पता चला आज शहर बंद है। दिल से आवाज़ आई "पता नहीं आज कौन मरा" घर वापस आकर अखबार देखा तो कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टार राज कुमार उनके चाहने वालों को घम-ज़दा छोड कर आख़िरी नींद सो गऐ। राज कुमार के चाहने वालों ने अपने घम का इस तरह इज़हार किया पूरे शहर को ज़बरदस्ती बंद करवा दिया, सरकारी और पराईवेट बसों को चलाया यहां तक के पुलिस वालों को भी नहीं बखशा, टीवी पर पुलिस वालों को पिटते हुवे दिखाया।

अम्मी मेरा पासपोर्ट फाडने ही वाली थी के बस बहुत होगिया सभी शरीफ लोग अपने शहरों में शरीफों की तरह काम काज करते हैं और तुझे किया ज़रूरत है समन्दर पार नौकरी करने की? पासपोर्ट फाडने की बात सुनते ही मेरा कलिजा कांप उठा फिर बडी मिन्नतें करने के बाद पासपोर्ट मिला के सिर्फ तीन महीनों में हमेशा के लिऐ वापस आजाऊंगा।

अपने शहर को देख कर लगा जैसे नया ज़माना है, किसी ज़माने में पेजर रखने वालों को हम इज़्ज़त की निगाह से देखते थे और आज आटो रिकशा वाले, ठेले वाले सभी के पास रंगीन मोबाइल फोन दूसरी तरफ बडे बडे शॉपिंग मॉल्स यूरोप और दुबई जैसे सिटी बस और वहीं भुकमरी, गरीबी गन्दी और तंग सडकें आज भी जूं कि तूं रहीं।

दुबई वापस आया तो गर्मी ने स्वागत किया, ये तो कुछ भी नहीं अगले महीने से यहां आग उगलने वाली गर्मी पड़ेंगी। दोसतों ने खुश खबरी दी के थोडा दुबला हो गया हों। दोसतों के मुंह से अपने आप को दुबला सुन कर बहुत अच्छा लगा वरना अब तक तो वो सब मुझे मोटू कह कर छेडते थे।