जापानी कवाली
हमारे पडोस की बिलडिंग मे एक अपने मित्र से मिलने गया तो उसके सामने वाले फ़्लैट से नुसरत फतेह अली खान की चीखें सुनाई दे रही थीं, मेरा मतलब है Classical राग की आवाज़ें। जब उनका दरवाज़ा खुला तो चार जापानी बाहर निकले, मैं इन्हें जानता हूं वो सब एक जापानी रेसटुरंट मे काम करते हैं जो करीब ही है। दूसरे दिन भी मुझे अपने उस मित्र के फ़्लैट पर जाना हुवा तो तब भी उन जापानियों के फ़्लैट से नुसरत की चीखें सुनाई दी और उस फ़्लैट मे सिर्फ जापानी लोग ही रहते हैं उनके अलावा दूसरा कोई पाकिस्तानी या भारती नहीं है। उन जापानियों को अपनी जापानी और अंग्रेज़ी भाषा के सिवा दूसरी कोई भाषा नहीं मालूम। मुझे याद आया एक बार नुसरत फतेह अली खान अपनी कवाली गाने के लिए बेंगलौर आऐ तब एक उर्दू अखबार ने लिखा थाः नुसरत ने चार बार जापान जाकर जापानियों को भी अपनी कवाली सुनाई थी और जापानी लोग नुसरत की कवाली सुनने के लिए अपने जूते उतार कर अदब से बैठते थे।
4 Comments:
अरे भाई ये चीखें सरहदें पार करती हैं, सरहदें, दीवारें हमारे लिये, चीखों के लिये नही।
By ई-छाया, At 11:53 AM
क़व्वाली ख़ुदा की इबादत समान है. जापानियों का जूते उतारकर बैठना उनका समर्पण जताता है. नुसरत साहब न भूतो न भविष्यति हैं. इस जेपनीज़ इन्फ़ो के लिए थैंक यू.
By नीरज दीवान, At 12:13 PM
कला सीमाओं से परे होते हैं.
By Anonymous, At 9:18 PM
"नुसरत फतेह अली खान की चीखें" - वाह, क्या साहित्यिक प्रयोग है। :-)
By Pratik Pandey, At 2:20 AM
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