नई बातें / नई सोच

Monday, July 17, 2006

कैसे करूँ शादी?

अम्मी ने मेरे लिए एक लडकी का फोटो साथ मे उसका बयुडाटा भेजा, वोह 22 वर्ष की BA पास खूबसूरत लडकी है साथ मे पांच वकत की नमाज़ी भी और उसका पूरा खानदान माशा-अल्लाह पक्का इसलामी और दीनदार है उन्हें भी पांच वकत का नमाज़ी और पक्का लडका चाहिए। यहां मेरे चंद मुसलमान मित्रों के साथ इस बारे मे बात किया तो बताया कि लडकी मे कुछ बुराई तो नही सोच समझ कर हां कह दे। मैं ने लडकी के घर वालों को डैरेक्ट खत भेजा जिसमे शादी की शर्त रखी कि अगर शादी होगी तो कोर्ट मे होगी वोरना नहीं। लडकी वाले आग बगला होए और हमारे घर जाकर झगडा किया कि कैसी तरबियत दी है अपने बेटे को? आपका बेटा मुसलमान है या फिर कोई और?? भाई हम मुसलमान हैं शादी घर मे हो या मसजिद मे मगर निकाह ज़रूरी है और आपका बेटा कहता है कि वोह कोर्ट मे शादी करेगा छी छी ------ किया लडकी को भगा के शादी करेगा या फिर लडकी लावारिस है?

उसके दूसरे दिन अम्मी ने मुझे फोन पर खूब सुनाई, तेरे विचार बताने की किया ज़रूरत थी? कितना अच्छा खानदान है ढूंडने से भी नही मिलता। अम्मी से बात करते होवे मेरी बोलती गुम होगई क्योंकि अब्बा भी वहीं थे। मैं ये बताना चाह रहा था कि अपनी होने वाली पार्टनर को अपने बारे मे सब कुछ सच सच बता देना चाहता हूं क्योंकि बाद मे वोह ना पछताए और मुझे गालियाँ दे कि पहले क्यों नही बताया। मैं खुल कर अपने विचार अपने घर वालों को बता नही सकता वोरना अब्बा खुद मेरी मौत का फत्वा निकाल देंगे और शाही इमाम दिल्ली से बेंगलौर तक मेरे खिलाफ जुलूस लेकर जनाज़ा के साथ पहुंच जाएगे।

अपने विचारों को शेर करने के लिए ये मेरा ब्लॉग काफी है और मेरी डाईरी यही ब्लॉग है, अपने ब्लॉग पर पूरी आज़ादी के साथ अपने विचार लिख सकता हूँ जो बोल नही सकता। भारत मेरा पहला धर्म है जहां मैं पैदा होवा और उसी देश के बनाए कानून के मुताबिक कोर्ट मे शादी करूँगा मगर ऐसी लडकी मिलेगी कहां?

10 Comments:

  • फिकर नॉट. इधर इंडिया में बहुत सी लड़की हैं जो मुस्लिम होते हुए भी शोएब भैया की हमख्याल हैं. रूढ़ियों को तोड़ने के रास्ते पर चलोगे तो हज़ार ख़तरे उठाने ही होंगे. फिर भी यदि दिल इसी लड़की पर आ जाए तो एक दफ़ा बातें साफ़ साफ़ कर लेने में बुराई क्या है. बता दो इस लड़की को अपनी बात कि आपका क्या सोचना-समझना है. वरना बस, ट्रेन और लड़की के जाने पर पछतावा नहीं करना चाहिए. आती रहेंगी बहारें.....
    और हां भैये ये वर्ड वेरीफ़िकेशन हटा लो.. ये बहुत परेशां करता है अपन को. कई पढ़कर चले जाते हैं तो कोसते होंगे.

    By Blogger नीरज दीवान, At 12:07 PM  

  • शोएब भाई,
    घबराएँ मत, जहाँ चाह है, वहाँ राह जरूर है।
    खुदा के घर देर है, अंधेर नही।
    हम सब आपके साथ दुआ करते हैं, कि आपको आपके ख्यालों की मलिका जल्द मिले, और आपका आने वाला जीवन खुशगुजार हो।

    By Blogger ई-छाया, At 12:55 PM  

  • देखो जी, अपन तो गंधर्व विवाह पद्धति को मानते हैं, यानि कि विवाह एक पुरूष और एक स्त्री के मन और तन का मिलन है जब वे खुद को एक दूसरे पर समर्पित कर देते हैं। तो इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि विवाह सात फ़ेरे डाल के हो, निकाह पढ़ कर हो या कोर्ट में ठप्पा लगा के हो। तो आप कोर्ट में शादी करने को काहे ज़िद कर रहे हो?

    प्रेम और विवाह समर्पण का नाम है जहाँ अपनी खुशी से अधिक अपने प्रेमी/पति-पत्नी की खुशी देखी जाती है, तो इसलिए यदि आपकी "उन" की खुशी निकाह पढ़वाने में है तो आपको क्या दिक्कत है? या फ़िर आप उनसे यह कह सकते हो कि निकाह पढ़वाना आपको मन्ज़ूर है परन्तु उसके बाद कोर्ट में बकायदा कानूनी ठप्पा भी लगवाना होगा। मैं नहीं समझता कि इस्लामी तरीके से निकाह पढ़ लिए जाने के बाद इसमें उन्हें कोई आपत्ति होगी। नहीं तो आप कह सकते हैं कि सिक्का उछाल निर्धारित किया जाए कि निकाह पढ़ा जाएगा या ठप्पा लगेगा!! ;) :D

    By Anonymous Anonymous, At 1:56 PM  

  • शोएब भाई जहाँ चाह, वहाँ राह। लेकिन मानना पड़ेगा आपकी हिम्मत को। एक दिन आपको भी आपकी हमख्याल मिल जायेगी।

    By Anonymous Anonymous, At 8:28 PM  

  • Shuaib Bhai

    Amit ki baat par gaur farmaya jaye. Mein bhi yahi sochta hun. Aarey agar ladki pasand hai tau thode bahut totkay karne mein koi harz nahin.

    By Anonymous Anonymous, At 8:46 PM  

  • सुहैब भाई,

    आपकी स्थिति जो आज है, उसे मैं सोलह वर्ष पहले भुगत चुका हूँ. हालाकि मेरा परिवार दकियानूसी नहीं रहा, परंतु अंतर्जातीय विवाह के नाम से प्रतिरोध बहुत हुआ.

    आप शांति से काम लें. अपनी बात पर जमे रहें. साल दो साल बाद आपके घर वालों को भी आपकी बातों में सच्चाई नजर आएगी. और उन्हें आपको आपकी जिंदगी आपके हिसाब से जीने की आजादी देनी ही पड़ेगी.

    वैसे, झूठा, मान रखने के लिए आप इन टोटकों को अधूरे मन से कर सकते हैं, परंतु मेरे विचार से यह कोई उचित बात नहीं.

    हो सके तो आप अपने मिलते जुलते विचारों वाली लड़की ढूंढें - (अपने धर्म-जाति इत्यादि तो बेकार की बातें हैं - )और उससे विवाह करें.

    आप जैसे लोग समाज में परिवर्तन नहीं करेंगे तो और कौन करेगा.

    हमारी शुभकामनाएँ.

    (आपके विवाह में बेस्ट मैन (धर्म पिता या धर्म भाई) बनने के लिए मैं तैयार हूँ)

    By Blogger रवि रतलामी, At 10:48 PM  

  • शोएब भाई
    अमित भाई की बात मे दम है, एक बार गौर फरमाया जाये !
    कभी कभी घरवालो की खुशी के लिये कुछ ना चाहते हुये भी करना पढता है

    By Anonymous Anonymous, At 11:13 PM  

  • मैं मानता हूँ कि अमीत जी की बात मे दम है। दरअसल मुझे इस वकत शादी की कोई ज्लदी भी नही और दो साल इन्तेज़ार करलूँगा पर मुझे अपनी हम-ख्याल लडकी को ढूंडना है पता नही वोह दुनिया के किस कोने मे है?

    बाकी नीरज भाई, e-shadow जी, तारुन जी और रवी भाई अशीश भाई - आप सबकी राए, दुआ और टिप्पणियोँ के लिए बहुत धन्यवाद

    By Anonymous Anonymous, At 3:12 AM  

  • फिर शादी हुई या नहीं?

    By Anonymous Anonymous, At 4:57 AM  

  • ये blog तो सचमुच तुम्हारी डायरी है... गजब

    By Blogger sobubisht, At 12:43 AM  

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